भारतीय भौगोलिक और राजनितिक विविधता के कारन यहाँ की परिवहन व्यवस्था काफी ग्रसित है। निंम्नलिखित लेख में हमने कुछ व्यवसाय अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों को दर्शाया है। आशा है की ये आपके हित में हो।
श्री राजा भारत से – भारत ,हिन्दुओ से हिंदुस्तान , और इंडस नदी से इंडिया
हमारा देश नीतियों का देश है |हमारी नीतिया कितनी सफल – विफल रही है इसका सदैव इतिहास साक्ष्य रहा है | हमारी नीतियों का लोहा पुरे पुरे विश्व ने श्री कृष्ण निति , महात्मा विदुर निति ,आचार्य चाणक्य नीतियों के रूप में युगांतर तक से जाना और माना है | और इसी ज्ञान और पूंजी अर्जन हेतु कई बार हमें बंधत्व का बोध और दासता का स्वाद भी चखना पड़ा |
१९४७ में भारत अंग्रेजो की मर्जी से पाश्चात्यता की मोहर पे उनकी शर्तो पर क्वचित स्वचालित आजाद हुआ | पिछले सप्त दशकों में हमने अनेक नीतियों को आते- जाते देखा किन्तु लगभग ६,५०,००० गाँवो ,६८६ जिलों , ३४ राज्यों (२ द्वीप राज्य ) को जोड़नेवाले अखंड भारतीय राज्यमार्गो महामार्गों की परिवहन सेवा में विशेष और अपेक्षित बदलाव नहीं आये | हाँ कुछ फर्क हुआ है लेश मात्रा का किन्तु भार के प्रतिकूल |
हर देश की भांति हमारी व्यवस्था भी तीन परिवहन क्षेत्रो पर अवलम्बित है – जल थल (राज्यमार्ग – लोहमार्ग )और वायु |
जल और वायु परिवहन को श्रेष्ठ श्रेष्ठि और आयाम- व्यायाम मिले किन्तु इन्ही की तरह मार्ग परिवहन में सुधार नहीं हुआ |
आज मार्ग परिवहन व्यापर ,व्यापारी और सेवा भारी कर्ज ,कर नियमो और दबावों के निचे कुचली पड़ी है |
निचे हम भारतीय मार्ग परिवहन व्यापर दैनिक और विशेष कार्य पर प्रकाश डाल रहे है ,ये हमारा व्यक्तिगत दृश्टिकोण है यदि किसी को इससे बाधा हो तो हम उससे क्षमास्वा है |
ओ. – ओवर /एक्स्ट्रा (अधिक , प्रतिकूल )
डी.- डायमेंशन (साइज ,अनुपात )
सी. – कन्साइनमेंट (उत्पाद ,माल ,प्रेक्षित वस्तु)
ओ.डी.सी. ट्रांसपोर्टेशन जितना छोटा शब्द है उससे कही अधिक वास्तविक स्वरुप में इसका कार्यान्वयन अत्यधिक कठिन है | भारतीय राजमार्गो पर .जिसका प्रमुख कारन भारतीय बहुप्रांतीय भौगोलिक ,राज्यस्तरीय विविधता अनुकूलता के प्रतिकूल जर्जर और उपेक्षित राज्यमार्ग ,कर,अनपेक्षित दंड व नियमो में विविधता ,स्थानिक बाहुबलियों का हस्तक्षेप ,प्रशासनिक रंगदारी ,सरकारी गैर जिम्मेदारी व व्यापारिक संगठनो की उपेक्षा व अवसरवादिता यह कुछ ऐसे नगण्य तथ्य है जिन्होंने ऐसे कार्यो को निष्कारण जटिल बना रखा है |
हम खुदको प्रगतिशील राष्ट्र की संज्ञा से सम्बोधित करते है | किन्तु क्वचित पूंजीपतियों के पूंजीवाद को बढ़ावा देने हेतु हमारा उच्च कार्यकारी वर्ग निम्नवर्ग व्यापारिक समस्याओ और जमीनी वास्तविकता को सुनना ही नहीं चाहता |
वास्तविकता में बड़ी अड़चने है जिसका कोई संज्ञान नहीं लेना चाहता –
१)जर्जर राज्यमार्ग –
आज पूंजीवाद की चाटुकारिता वश आये दिन पुरानी वाहनों के बंदी की बात की जाती है ,किन्तु कोई भी महानुभाव मार्गो -महामार्गों के वास्तविक जमीनी विकास को सार्थक नहीं करता .बी एस .४ को बढ़ावा देनेवाले क्या भारतीय मार्गो से अवगत नहीं है क्या ? .
२) राज्यस्तरीय विविधता –
राज्यस्तरीय विविधता को केवल भौगोलिक रूप से न देखते हुए प्रशासनिक रूप से देखे तो प्रतीत होता है | यहाँ एक राज्य किसी चीज या कार्य की अनुमति देता है तो कोई इसका खंडन करता है | हर व्यक्ति आय कर सामान रूप से हर राज्य में देता है किन्तु व्यावसायिक कार्य हेतु हर राज्य में भिन्न भिन्न कागजी करवाई और करो के साथ हर एक रक्तबीज जैसे भ्रस्ट अधिकारियो का सामना करना पड़ता है ,जो कदाचित वास्तविक रूप से अमानवीय होता है | जी .एस . टी . भारत में लागु होने के कारन इसमें कुछ अंश तक सुधार हुआ है .किन्तु इसमें में कदाचित अपराधियों को अभयदान देकर निम्नजन से मोटी उगाही की जा रही है |
३)अनपेक्षित दंड व नियम
अनपेक्षित दंड व नियमो का हाल कुछ ऐसा है १ इंच की बढ़ोतरी के लिए छत्तीसगढ़ -३०००,राजस्थान -५०००, गुजरात -१०००० तो महाराष्ट्र १२,४०० वसूलता है व तदोपरांत राज्य सीमाओं पर प्रशासनिक अधिकारी रंगदारी की जबरन उगाही करते है | जिसपर कोई भी आलाकमान ध्यान और टिपण्णी नहीं करना चाहता |(कर्मचारियों की भ्रान्ति ऐसी है के इसमें मुख्यमंत्री से परिवहन मंत्री तक का योगदान होता है |)
४) स्थानिक बाहुबलियों का हस्तक्षेप
स्थानिक बाहुबलियों का हस्तक्षेप नियमित व ओ.डी.सी. ट्रांसपोर्टेशन में सबसे बड़ा अवरोध है | निर्गम क्षेत्रो में स्थानिक कुख्यातों के माध्यम से प्रशासनिक मदत से क्वचित बाहुबली अनायास रंगदारी अनैतिक रूप से उगाही करते है | उत्तर पूर्वी राज्यों व अन्य नगरों में इसके जिवंत उदहारण सुनाई देते है ,साथ ही बड़े सरकारी तबके के मंत्रियो के नाम से यह उगाही आये दिन बढ़ती जा रही है |
५ )अनुमति पत्र में अत्यधिक विलम्ब व लम्बी दलाली वाहन व्यापर का शोषण –
बड़े कठिन प्रतिकूल वजनी और ठोस ऊँचे मालो को बनाने और खरीदी विक्री में कोई सरकारी समस्या नहीं किन्तु मोटी कर अदायगी के बावजूद उसके परिवहन आवागमन में अनुमति पत्र के नाम पर लम्बी रकम और अत्यधिक समय लिया जाता है .और इस निष्क्रिय प्रक्रिया में सर्वप्रथम परिवहन सेवा संसथान को दोषी ठहराया जाकर उसका भरपूर शोषण किया जाता है | कारखाने मालिकों व व्यापारिक कर प्रणाली को इसपर गूढ़ विचार करना चाहिए क्योकि यह समस्या गंभीर है .साहित्य व उत्पाद की बिक्री के साथ इसके परिवहन की अनुमति पत्र भी साथ ही मिलना चाहिए | कर कार्यालय से जनहितार्थ ऐसा करना अतिशय उपयुक्त है |
६)ईंधन प्रणाली –
हमारे देश में आये दिन नए घोटाले और धांधलियाँ होती है , ईंधन विभाग में इसकी कोई सीमा नहीं .ईंधन में सब्सिडी छूट भी मिलती है एक बड़े जनसँख्या वर्ग के लिए किन्तु कुछ लोग उसका अनुपयुक्त दुरूपयोग अधिक करते है |हमारे अपने विचार में सब्सिडी का ईंधन केवल परिवहन वाहनों को मिले जिससे यातायात और दैनिक उपयोगी वस्तुओ के भाव में अपेक्षित किफ़ायत मिले और हर जन मानस निम्न मूल्यों पर अपनी दैनिक उपयोगी वस्तुओ को प्राप्त कर सरल -सुगम जीवन का निर्वाह कर सके |
७)चाटुकार टेंडरिंग प्रणाली –
पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते भारतीय सरकारी – गैरसरकारी लगभग काफी संस्थाओ में निवीदा (टेंडरिंग प्रणाली) को महत्व मिला | किन्तु हम है तो भारतीय ,कुछ आपसी जयचंदो ,पूंजीवादी लालच ,बाहुबली प्रभाव ,व्यक्तिगत स्वार्थ ,क्वचित लाभ के वशीभूत होकर कई बड़े कर्मचारी अपने स्वाभिमान से समझौता कर बैठते है | परिणाम स्वरुप वो अपने पद ,संस्था की प्रतिष्ठा और भविष्य से खेल जाते है | पुणे,नैनी ,कोलकाता ,असम में शक्ति प्रकल्प और अन्य व्यापारों से जुडी संस्था की अवनीति इसका जिवंत उदहारण है | यदि हर बार नियमतः विक्रयी ,विक्रेता ,सेवादार बदला जाये तो कदाचित इन प्रश्नो से कुछ हद तक निजात मिले और व्यापारिक संस्थाओ को वास्तविकता में लोभ से हटकर लाभ भी हो |
८)प्रशासनिक बल ताड़ना –
उपरोक्त विषय में जयचंद का जिक्र किया गया है | यहाँ भी कुछ ऐसा है भारी कर और दंड राशि के बाद भी वाहन चालकों को प्रशासनिक धुरंधरों से उगाही और अपमान का सामना करना पड़ता है | और इसपर उन्हें कभी भी शर्म नहीं अपितु गर्व रहा है |
९) अपेक्षित कार्यक्षमता के वाहनों का अभाव
भारतीय वाहन उत्पादक भी कदाचित राष्ट्रवाद के आभाव में निर्यात को ही प्रधानता देते है | वो अपने अच्छे उत्पादों को राष्ट्रीय बाजार में देना हे नहीं चाहते | कदाचित इन तथ्यों के मूल्यांकन में मूल्य का भी मूल रूप से महत्व है |जिसके परिणामस्वरूप भारतीय परिवहन कारोबारियों को अच्छे ऑफ रोड चलनेवाले वाहन उपलब्ध ही नहीं हो पाते | सरकारी उदारीकरण की समय से इस विषय पर दृस्टि नहीं पड़ी तो अवनति से भारत भी नेपाल ,भूटान ,बांग्लादेश और पाकिस्तान के पीछे खड़ा होगा .
१०) रेल विभाग का मार्ग परिवहन में सदा ही उदासीन रवैया
भारत में भारी माल परिवहन में सबसे बड़ा अवरोध है रेलवे क्रोस्सिंग्स .सरकारों अनुमति पत्रों के बावजूद अपेक्षा से अधिक घूस और समय खाने के बाद भी सरकारी कर्मचारी यथोचित योगदान नहीं देते | जिसका नुक्सान न केवल परिवहन व्यापारियों अपितु बड़े कारोबारियों और व्यवसायियों को भी उठाना पड़ता है | कई बार तो माल के साथ जान हानि का भी सामना करना पड़ता है |
११) वाहन चालकों पर नगण्य प्रतिबन्ध ,निरादर और दोषारोपण
देश की प्रगति में मिल का पत्थर और आतंरिक सिपाही वाहन चालक होता है | वाहन चालकों पर प्रतिबन्ध ,निरादर और दोषारोपण ये कोई नयी बात नहीं |आये दिन नए नियम वाहन चालकों पर थोपे जाते है , और इनसे अच्छी खासी उगाही भी होती है | किन्तु वास्तविकता में इन चालकों और इनके कुटुंब की सुरक्षा के लिए क्या प्रयास है आजतक ….यह एक बड़ा यक्षप्रश्न है | देश की परिवहन व्यवस्था कही जानेवाली परिवहन व्यवस्था का अनमोल सिपाही छोटी रकम के लिए २४ घंटे मेहनत करता है |जिसे हमेशा व्यसनी ,चोर और उपेक्षित दृस्टि से देखा जाता है जबकि देश की अर्थ व्यवस्था का महत्वपूर्ण भार केवल वाहन चालक पर ही है . जब चालकों के हितो की बात आती है तो सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह जाती है | आवागमन बिमा न लेने वाले गैरजिम्मेदार व्यापारी भी अपनी गलतियों को चालक पर दोषारोपण कर उनका मेहनताना खा जाते है |
इन भीषण आपदाओं -विपदाओ और संज्ञाहीन समस्याओ को लांघकर हमने विगत दशकों से अपने ग्राहकों के विश्वास को पूर्ण रूप से सम्मानित किया है और सदा हे उनकी अपेक्षाओं का आदर किया है | साथ ही उनके अमूल्य योगदान हेतु हमारा वर्ग उनका आजीवन ऋणी और कर्तव्यपरायण है | भविष्य में भी उनके योगदान और आशीर्वाद की अपेक्षा करना कदाचित हमारा अधिकार भी है |