भारत का पूर्ण प्रपत्र
राजा भरत का भारत कुछ गद्दारो और अवसरवादियों की अतिमहत्वाकांक्षा वश इंडस नदी के कारन इंडिया के नाम से जाना गया ।
वर्त्तमान का भारत कैसा है ?…२०१९ का भारत
६,५०,००० गांव ,६८६ जिले कल तक ३६ और अगस्त २०१९ से ३७ राज्यों का एक खंड जो आज का भारत और मृदुभषियो के लिए इंडिया है ।जहा हर राज्य का , हर जिले का, हर गांव का ,सरकारी और बहुतायत गैरसरकारी खलनायक नायक बन कर स्वेच्छा से शोषण किये जा रहा है । हमारा भारत भावहीन हो गया । हमारी कायरता का प्रमाण है विगत १००० वर्ष जहा हमपर ८०० वर्ष मुगलो २०० वर्ष अंग्रेजो और अब उनके रक्तबीज हमपर शाशन कर रहे है । और हम सदा अपनी छोटी लालचों से लाचार मूकदर्शक बने पंक्तिबद्ध होकर स्वयं को लूटने के लिए हर बार किसी को आवाहित कर रहे है ।
क्या हम कायर है ?
हाँ या ना ,यह उत्तर स्वयं आप दे ।हमारा आपका अस्तित्व उस बिल्ली की तरह है जो दुश्मन के घर जाकर आंख बंद कर दूध पीती है और छोटे से आहार के कारन अपने ऊपर पड़नेवाले बड़े प्रहार को अनदेखा करना चाहती है ।
वर्त्तमान व्यापर –
विगत १००० वर्षो की दासता हमारी धमनियों में घर कर गयी है ।अपनी कान्ति को खो कर जिन क्रांतिकारियों ने हमारे आपके लिए देहत्याग किया उन्हें केवल सोशल मीडिया पर याद किया जाता है । और आज भी उन्ही की मृगतृष्णा का फायदा उठाकर लोग हमें और आपको मुर्ख बना रहे है और हम शौख से बन भी रहे है । जिसके परिणामस्वरूप हमारे व्यापारों पर विदेशी पकड़ बढ़ रही है और स्वदेशी का नाश राष्ट्रभाव की कमी के कारन सामने है ।
राष्ट्रभाव क्या है ?
किसी समय जापान पर किसी बड़े देश ने हमला किया और उसे मटियामेट कर ऐसा आघात दिया जो उसके अतीत ,भविष्य और वर्त्तमान को पतित कलंकित कर दे । लेकिन उन्होंने किसी के सामने ये रोना नहीं रोया । अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में परावर्तित किया ।अपने रोष और क्रोध को विवेक के साथ उन्होंने ऐसा शक्तिशाली ढांचा तैयार किया की आज उनकी तकनीक से टक्कर लेने की क्षमता विश्व के किसी राष्ट्र में नहीं । उन्होंने हमलावर देश से आज तक कुछ लिया नहीं ना मदत और ना ही सांत्वना इसे कहते है राष्ट्रवाद ।
राष्ट्रवाद तो बड़ा दूर आज विश्व हमें हमारी गद्दारी और मूर्खता के कारन जानते है । हमारी कायरता को शहनशीलता का मुखौटा दे दिया गया । हमारे देश में प्रतिभाओ का गाला घोंट दिया जाता है अवसर वादियों के चाटुकारिता के लिए ।
परिणामस्वरूप आज दुनिया कि सभी बड़ी संस्थाए भारतीयों के नेतृत्व से चल रही है । फोर्बेस पत्रिका में प्रकाशित १०० में से ९० बड़े घराने भारत से बाहर बसते है । जो व्यापर भारत में करते है यहाँ के मूल के है किन्तु बाहुबलियों ,नेताओ और निरंतर बाधाओं के निदान के लिए मज़बूरी वश अपना राष्ट्र छोड़ के अन्य राष्ट्रों के क्षारणार्थी हो गए ।
क्या यह भारत आना चाहेंगे………………………………. कदाचित कभी नहीं
और शायद इन्हे आना भी नहीं चाहिए हम मूर्खो के बीच
आजके भारत में रामराज सबको चाहिए किन्तु ……राम ……………………………हे राम ………..उन्हें कोई नहीं चाहता ।भारत देवताओ की भूमि है हमारे यहाँ मंदिरो में अरबो के दैनिक चढ़ावे चढ़ते है और हमारे श्री राम विगत दशकों से तिरपाल में पड़े है ।
हम खुदको नाकारा नपुंसक दरिद्र लाचार भारतीय मानते है आप खुद को क्या मानेंगे ?