बंधुओ भारत एक नीतियों का देश है
‘ इंडो -एचसीएम’ क्या है ? ‘ भारतीय राजमार्ग क्षमता नियमावली’
बंधुओ भारत एक नीतियों का देश है . राष्ट्रीयता की बात करे तो हमें पड़ोसियों पर अत्यधिक (अपनों से भी ) विश्वास होता है जिससे युगो – युगो से हमारे साथ विश्वासघात होता आया है । हम खुद को विकसित – विकसशील राष्ट्र की संज्ञा से सम्बोधित करना चाहते है किन्तु हमारे पास विभीषणों और जयचंदो की भी कोई कमी नहीं है .ये कुछ ऐसे पढ़ेलिखे शेखचिल्ली है जो जानबूझकर अपनी बैठी डाली काटने पर तुले हुए है . जागरूक तो इतने की गाड़ी पंक्चर होने पर भी सरकारी नाकामी गिनने और ऐसी तैसी करने से बाज नहीं आते . अपने बखानो में १८ वेद भी काम पड़ेंगे तो आईये थोड़ा देश को भी देख ले |
देश को आजाद हुए तो लगभग ७० वर्ष हो गए । किन्तु आज भी मार्ग और राज्यमार्गो की हालत और हालात दयनीय है .देश का उत्पादन धुंआधार है हर क्षेत्र में किन्तु गुणवत्ता ऐसी की शैतान भी शर्मा जाये . मार्ग बनानेवाली हर कंपनी या कार्यरत कर्मचारी धन से लदा हुआ है किन्तु मार्गो का असली दावेदार वाहन चालक पिछले ७० सालो से दरिद्र ही है ।उसे सदा ही रोजी ,रोटी ,निद्रा ,राशि ,सुरक्षा ,सम्मान और दक्षता का अभाव रहा है और अभाव में हे उसकी जीवनलीला का भयानक अंत हो गया |
दोष वाहन मालिकों का भी है लेकिन कहाँ तक , वर्त्तमान स्थितिनुसार हर गाड़ी मालिक ५०,००० से अधिक गाड़ियों की किस्ते भर रहा है और हर महीना लगभग उससे ५०,००० आर .टी .ओ. , पुलिस ,बाहुबली , ट्रांसपोर्टर , दलाल , हमाल .चोर ,राज्य सरकार ,केंद्र सरकार ,ड्राइवर इत्यादि नियमित कमा रहे है .और हर प्रकार का दोषारोपण झेलते हुए मालिक बेबसी में घर जमीन बेच कर अदायगी किये जा रहे है जिनका अंत भयानक है | ये दयनीय अवस्था केवल राज्यमार्ग परिवहन सेवादाताओं की है जिन्हे बिना किसी मतलब के विदेशी कंपनियों से , चाटुकारी कॉर्पोरेट्स से ,सरकारी विषम नीतियों से ,कार्यालयी कागजी भारो से ,बाहुबलियों के आतंक से ,सरकारी बाबुओ के रोष और शोषण से भयंकर हानिया झेलनी पड़ती है |
वाहन बनानेवाली कम्पनिया
हर प्रकार की सरकारी सुविधाओं के उपभोग और करमुक्ति के बाद भी राष्ट्रीय वाहन निर्माता अपेक्षित मूल्य पर नहीं दे पाते . उनकी सारी गुणवत्ता निर्यात उपक्रमों के काम ही आती है .
महंगे टोल
आवश्यकता से अधिक अनपेक्षित टोल राशि देने के बाद भी वाहनों हेतु उपयुक्त मार्ग नहीं मिले .ओवर साइज मालो के लिए अनुमति उसमे होनेवाले विलम्भ और राज्यमार्गो की विफलता ,प्रशासनिक शोषण ने मार्ग परिवहन व्यापार की हालत बात से बत्तर कर रखी है |
७० साल बाद वर्तमान प्रशासन ने शायद इसपर प्रकाश डालना उचित समझा और ‘राजमार्ग क्षमता नियमावली’ ( ‘इडो-एचसीएम’ ) के गठन पर विचार किया किन्तु उसमे भी योगदान और राय बड़े कॉलेजो से लिया जा रहा है क्या आपके देश का परिवहन सेवा प्रदाता इतना भी सक्षम नहीं की आप उससे भी विमर्श विचार कर सके |
पता नहीं हमारे प्रति सरकारी उदासीन रवैया कब बदलेगा . बदलेगा भी या नहीं बदलेगा .हमें अनुदान की नहीं अपितु सम्मान की आवश्यकता है .जिससे राष्ट्र की प्रगति में वास्तविकता में हम मिल के पथर बने .किन्तु निष्कारण हमारे अस्तित्वों को अनदेखा किया जा रहा है .कोई वास्तविकता का संज्ञान लेने में रूचि नहीं रखता . हमारा दावा है यदि हमारी नित्तियो का अनुसरण अमरीका करने लगे तो आनेवाले पंचवर्षो में वह भी भूटान बन जायेगा |